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Monday 12 September 2011

दो पग जिंदगी

                                                हम बड़े क्यूँ हो जाते है (बचपन कितना अच्छा था )
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
पाप भरी इस दुनिया में , अब और नहीं रहना चाहती हू मै
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै !

बचपन को जीना चाहती हू मै
प्रकृति की गोद में , फिर से झूला झूलना चाहती हू मै,
लुका-छुपी के वो खेल , रसगुल्लों की वो चोरी ,
वो भाई के साथ मीठी सी नोक-झोक 
वो पापा मम्मी के साथ घंटो हाथ पकड़ के बैठ जाना चाहती हू मै,
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै!

13 comments:

  1. Geeta Jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
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  2. क्या करें , बड़ा तो होना पड़ता है ना :)

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  3. बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
    निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
    Bahut sundar bhavabhivyakti,aabhar

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  4. निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
    पाप भरी इस दुनिया में , अब और नहीं रहना चाहती हू मै
    बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै !

    संवेदनाओं को बहुत सुन्दरता से पेश किया है आपने ....बचपन -बचपन ही होता है ....आदमी इसे क्योँ खोता है .....बड़ा होने पर फिर बचपन के लिए रोता है ....आपका आभार

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  5. सिर्फ़ दो पग, नहीं इतने में कुछ नहीं होगा।

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  6. हिंदी की जय बोल |
    मन की गांठे खोल ||

    विश्व-हाट में शीघ्र-
    बाजे बम-बम ढोल |

    सरस-सरलतम-मधुरिम
    जैसे चाहे तोल |

    जो भी सीखे हिंदी-
    घूमे वो भू-गोल |

    उन्नति गर चाहे बन्दा-
    ले जाये बिन मोल ||

    हिंदी की जय बोल |
    हिंदी की जय बोल

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  7. बहुत सुन्दर - पर सिर्फ दो पग - ? वैसे - तीन पग में तो वामन जी ने पूरा ब्रह्माण्ड समेट लिया था :)

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  8. सुन्दर कविता बचपन के भावों को समेटे अच्छी लगी.

    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  9. बचपन को जीना चाहती हू मै
    प्रकृति की गोद में , फिर से झूला झूलना चाहती हू मै,
    लुका-छुपी के वो खेल , रसगुल्लों की वो चोरी ,
    वो भाई के साथ मीठी सी नोक-झोक
    वो पापा मम्मी के साथ घंटो हाथ पकड़ के बैठ जाना चाहती हू मै,
    बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै!


    जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  10. बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
    निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,......बचपन के भावों को समेटे एक बहुत अच्छी कविता...

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  11. आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
    जय माता दी..

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  12. aap sabhi ko navratro ki subhkamnaye

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  13. बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने।
    अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।
    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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