निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
पाप भरी इस दुनिया में , अब और नहीं रहना चाहती हू मै
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै !
बचपन को जीना चाहती हू मै
प्रकृति की गोद में , फिर से झूला झूलना चाहती हू मै,
लुका-छुपी के वो खेल , रसगुल्लों की वो चोरी ,
वो भाई के साथ मीठी सी नोक-झोक
वो पापा मम्मी के साथ घंटो हाथ पकड़ के बैठ जाना चाहती हू मै,
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै!
Geeta Jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
क्या करें , बड़ा तो होना पड़ता है ना :)
ReplyDeleteबस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
ReplyDeleteनिस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
Bahut sundar bhavabhivyakti,aabhar
निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
ReplyDeleteपाप भरी इस दुनिया में , अब और नहीं रहना चाहती हू मै
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै !
संवेदनाओं को बहुत सुन्दरता से पेश किया है आपने ....बचपन -बचपन ही होता है ....आदमी इसे क्योँ खोता है .....बड़ा होने पर फिर बचपन के लिए रोता है ....आपका आभार
सिर्फ़ दो पग, नहीं इतने में कुछ नहीं होगा।
ReplyDeleteहिंदी की जय बोल |
ReplyDeleteमन की गांठे खोल ||
विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |
सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |
जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |
उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||
हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल
बहुत सुन्दर - पर सिर्फ दो पग - ? वैसे - तीन पग में तो वामन जी ने पूरा ब्रह्माण्ड समेट लिया था :)
ReplyDeleteसुन्दर कविता बचपन के भावों को समेटे अच्छी लगी.
ReplyDeleteआभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बचपन को जीना चाहती हू मै
ReplyDeleteप्रकृति की गोद में , फिर से झूला झूलना चाहती हू मै,
लुका-छुपी के वो खेल , रसगुल्लों की वो चोरी ,
वो भाई के साथ मीठी सी नोक-झोक
वो पापा मम्मी के साथ घंटो हाथ पकड़ के बैठ जाना चाहती हू मै,
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै!
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
ReplyDeleteनिस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,......बचपन के भावों को समेटे एक बहुत अच्छी कविता...
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
aap sabhi ko navratro ki subhkamnaye
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखा है आपने।
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर