मेरी सोच में आज मै आपके सामने इश्वर की भक्ति के बारे में अपने विचार रख रही हु और आप सभी से चाहती हु के आप भी अपने विचार बताये.
बचपन से ही हमे ये बताया जाता है के भगवन जी से जो भी मांगो भगवन जी वो दे देते है, और सच में हम भगवन जी से जो भी मांगते वो मिलता था , उस समय हम भगवन जी से नए कपडे अछा खाना ऐसी ही चीज़े मांगते थे , और हमारे माता पिता हमारी मांग पूरी करते थे , तब भगवान् जी मेरे बेस्ट फ्रेंड हुआ करते थे...
थोड़े बड़े हुए तो मांगे बढ़ने लगी , सारी फीलिंग्स माँ पापा को नहीं बता पाते तोह फिर से भगवान् जी का दरवाजा खटखटाते , हम्म तब की मांग थी , पढाई में अच्छे नंबर लाना , वो मांग भी काफी हद तक भगवान् जी ने पूरी की , तोह उनके प्रति विश्वास और बढ़ गया.
अब आया जवानी का दौर , और इस उम्र में प्यार होना लाजमी था, सायद आप सभी को भी होगा , और अपनी नैया पार लगवाने के लिए भगवान् जी को फिर से परेशान करना शुरू कर दिया,बेहद मुश्किलों के बावजूद इस बार भी भगवान् जी ने मेरी प्राथना सुन ही ली ..
अब विचार करने की बात ये है की क्या मै और मेरे जैसे कई लोग स्वार्थी हुए , हमने भगवान् जी को अपना मित्र
अपनी मांगे पूरी करने के लिए बनाया है, कोई भी परेशानी जीवन में आई तो सुरु हो गए अपने भगवान् जी को परेशान करने में, मैंने बचपन में ये भी सुना था हम जो भी अच्छे या बुरे करम करते है उसका लेका झोखा ऊपर वाले के पास होता है, हम पूरी दुनिया से झूठ बोल सकते है पर अपने अन्दर के इश्वर से नहीं , मै तो इस बात से