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Wednesday 28 September 2011

बुलावा



खुशियों से भरा है ये संसार 
जरा आके देखो तो इक बार .
आई होली , आई दिवाली ,
झूम के गया सावन फिर इक बार ,
बच्चे नाच रहे है 
अपने दिल में भर भर उल्लास .

  भांति भांति के रंग है ,भांति भांति के रूप 
 कोई बुलाये उसे कान्हा , तो कोई कहे वो है रामस्वरुप .

उल्लासित हो उठता है मन ,
देख के त्योहारों का दर्पण .


अब तो आ जाओ , छोड़ के अपना कारोबार ,
देखो राम जी ने भी कर लिया खतम अपना वनवास ,
खुशियों से भरा है संसार,
जरा आके देखो तो इक बार.


Monday 12 September 2011

दो पग जिंदगी

                                                हम बड़े क्यूँ हो जाते है (बचपन कितना अच्छा था )
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै
निस्वार्थ , निश्छल राह चाहती हू मै,
पाप भरी इस दुनिया में , अब और नहीं रहना चाहती हू मै
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै !

बचपन को जीना चाहती हू मै
प्रकृति की गोद में , फिर से झूला झूलना चाहती हू मै,
लुका-छुपी के वो खेल , रसगुल्लों की वो चोरी ,
वो भाई के साथ मीठी सी नोक-झोक 
वो पापा मम्मी के साथ घंटो हाथ पकड़ के बैठ जाना चाहती हू मै,
बस दो पग जिंदगी चाहती हू मै!

Monday 5 September 2011

"चंचल मन "


मन चंचल उढ रहा था पंख लगाकर 
तभी उसकी नज़र पड़ी एक कोमल फूल पर ,
दोनों की आखें हुई चार ,
दोनों ने रख्खे अपने अपने विचार ,
कसमे खाई , वादे किये ,
के तोह बिन मै नहीं , मोह बिन तुम नहीं.

फिर समय का चक्र घुमा ,
फासले बढे, फैसले लिए,
राह है , हम दोनों  की अलग ,
dhund लो अपने लिए कोई और हमसफ़र .

मन रोता रहा , फूल को जाता देख कर  ,..