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Wednesday 28 September 2011

बुलावा



खुशियों से भरा है ये संसार 
जरा आके देखो तो इक बार .
आई होली , आई दिवाली ,
झूम के गया सावन फिर इक बार ,
बच्चे नाच रहे है 
अपने दिल में भर भर उल्लास .

  भांति भांति के रंग है ,भांति भांति के रूप 
 कोई बुलाये उसे कान्हा , तो कोई कहे वो है रामस्वरुप .

उल्लासित हो उठता है मन ,
देख के त्योहारों का दर्पण .


अब तो आ जाओ , छोड़ के अपना कारोबार ,
देखो राम जी ने भी कर लिया खतम अपना वनवास ,
खुशियों से भरा है संसार,
जरा आके देखो तो इक बार.


7 comments:

  1. aap sabhi ko navratri or aane wale festivals ki shubhkamnaye

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  2. बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने।

    -----
    समय मिले तो यहाँ भी पधारें।

    सादर

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  3. दौड़ते भागते काल में ......त्योहारों का जाल....
    ऐसे ही तो बीतता..........जाता पूरा साल....
    जाता पूरा साल............है बढती नित मंहगाई....
    त्योहारों को देख ...........जान सांसत में आई....
    कह मनोज खुश होत क्योँ.....देख लुभावन छूट...
    सत्य यही त्यौहार सब.......सिर्फ जेब पर लूट....

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  4. thanks aap sabhi ko ,

    @manoj tumne to poem hi likh dali , acha mujhe batao hindi mei comment kaise likhte hai

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  6. बहुत सुन्दर भाव.... सार्थक प्रस्तुति....
    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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