तभी उसकी नज़र पड़ी एक कोमल फूल पर ,
दोनों की आखें हुई चार ,
दोनों ने रख्खे अपने अपने विचार ,
कसमे खाई , वादे किये ,
के तोह बिन मै नहीं , मोह बिन तुम नहीं.
फिर समय का चक्र घुमा ,
फासले बढे, फैसले लिए,
राह है , हम दोनों की अलग ,
dhund लो अपने लिए कोई और हमसफ़र .
मन रोता रहा , फूल को जाता देख कर ,..
फिर समय का चक्र घुमा ,
ReplyDeleteफासले बढे, फैसले लिए,
राह है , हम दोनों की अलग ,
dhund लो अपने लिए कोई और हमसफ़र .
ohhhhhhh
akshar man ke sath aisa hi hota hai....
jis ful ko o pashand karta hi o dur chala jata hi..
bahut sunder likhati hain ap.
ye word verification hata lijiye...
ReplyDeletecomments karne wale ko ashani hogi...
bas
dashboard>satting>comment>word verification ko no kar dijiye.
achhe bhaw
ReplyDeleteकुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeletethanks aap sabhi ko
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास है आपका,Meri Soch ji.
ReplyDeleteलिखती रहिएगा,दिन प्रति दिन निखेरेगा यह.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeletevaah....acchha likha hai.....
ReplyDeleteसोचा, सोचा बहुत सोचा.........समझ नहीं आया कि क्या टिप्पणी करूँ........बस इतना ही कहूँगा.......कि जब ह्रदय आहत होता है......तो शब्द और सृजन अपने आप होने लगते हैं.......
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत लिखा है.......खास तौर से मुझे एक लाइन बहुत अच्छी लगी........
"के तोह बिन मै नहीं , मोह बिन तुम नहीं."
मेरी ओर से अच्छी कविता लिखने के लिए बधाई.......