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Tuesday 26 July 2011

माँ


जब मै छोटी थी , नहीं नहीं बल्कि शादी होने से पहले तक, अगर मेरी माँ से किसी बात पे झगडा हो जाया करता तो  बाद में मन ही मन में बोलती थी, हम्म हमेशा कहती है माँ , (कितनी मुश्किलों से तुम्हे पाला मैंने) भला ये भी कोई बात है , इसमें क्या बड़ा काम किया है उन लोगो ने , हर कोई अपने बचो को पलता है ....

पर अब जब मै खुद माँ बन गई तो समझ में आया है , के माँ बन ने का असली मतलब क्या होता है ...
,सब लोग, मेरा मतलब है (पुरुष वर्ग) इस का असली अर्थ नहीं समझ पाएंगे ...जब से वो नन्ही सी जान हमारी कोख में आती है तब से लेकर तमाम जिन्दगी हम उसके सुख दुःख का अनुभव करते है ... उन ९ महीनो में जिन सारी दिक्हतो का सामना करना पड़ता है , जैसे की मन मचलना , घबराहट रहना , जैसे जैसे समय बढ़ता है चलने फिरने , सोने, जागने में दिकत होना , और जब बचे का जनम होता है उस प्रसव पीड़ा का दर्द , जो के असहनीय होता है (जिसे सब्दो में कह पाना मुश्किल है)
एक बात मै कहना चाहूंगी इन सभी मुश्किलों के बाद जब वो नन्ही सी जान की पहली झलक मिलती है तो दुनिया की सारी तकलीफे एक तरफ और उसका दीदार एक तरफ , फिर भी पलड़ा अपनी जान का ही जादा भरी होता है , उसे देख कर माँ अपने सारे दुःख दर्द भूल जाती है , और इश्वर का सुक्रिया अदा करती है के उसने हमे माँ बन ने का सुख प्रदान किया है ...तब से उस माँ की जिंदगी बदल जाती है वो किसी भी अपने सुख को परे रख के अपने बच्चे  के सुख के बारे  में सोचती है , उसके भविष्य की सारी प्लानिंग कर बैठती है , रात को खुद गिले में सोना मंजूर है पर बच्चे को सूखे में ही सुलाती है, पहले बच्चे का पेट भारती है उसके बाद ही खुद कुछ खाती है (ये महज सिर्फ किताबो में लिखी पंक्तिया नहीं है , पता नहीं माँ बन ने के बाद ये सारी भावनाए खुद बे खुद औरत के मन में आ जाती है, वो अपने बच्चे के सुख से हटकर कुछ सोचती ही नहीं )
आप सभी से मेरा निवेदन है आप चाहे कितने भी बड़े हो जाये , चाहे बोहत पैसा कमाने लग जाये , अपने पैरो पे खड़े हो जाये, पर ये कभी ना भूले की पहला कदम चलना आपको आपकी माँ ने ही सिखाया था, अपने पेरेंट्स को कभी हर्ट मत करियेगा , चाहे परिस्थिथिय कैसी भी रहे.